Kabhi ruk gae kabhi chal dae

 


کبهی رک گئے کبهی چل دئے، کبهی چلتے چلتے بهٹک گئے

یونہی عمر ساری گزاردی، یونہی زندگی کے ستم سہے


کبهی نیند میں کبهی ہوش میں، تو جہاں ملا تجهے دیکھ کر

نہ نظر ملی، نہ زبان ہلی، یونہی سر جهکا کی گزر گئے 


کبهی زلف پر کبهی جسم پر، کبهی تیرے حسین وجود پر

جو پسند تهے میری کتاب میں، وه شعر سارے بکهر گئے


مجهے یاد ہے کبهی ایک تهے، مگر آج ہم ہیں جدا جدا

وہ جدا ہوے تو سنور گئے، ہم جدا ہوے تو بکهر گئے


کبهی عرش پر کبهی فرش پر، کبهی ان کے در کبهی دربدر

غمِ عاشقی تیرا شکریہ، ہم کہاں کہاں سے گزر گئے



कभी वे रुकते, कभी वे चलते, कभी वे चलते समय खो जाते

 इसी तरह मैंने अपना पूरा जीवन बिताया, इसी तरह मैंने जीवन के उत्पीड़न को सहन किया

 कभी नींद में, कभी चैतन्य में, कहीं मैं तुम्हें पाया

 मैंने इसे नहीं देखा, मैंने अपनी जीभ नहीं हिलाई, मैंने सिर्फ सिर हिलाया

 कभी बालों पर, कभी शरीर पर, कभी अपने खूबसूरत होने पर

 मुझे अपनी किताब में पसंद की सभी कविताएँ बिखरी पड़ी थीं

 मुझे याद है एक बार एक था, लेकिन आज हम अलग हैं

 जब वे भाग गए, तो वे जंगली हो गए, जब व भाग गए, तो वे अलग हो गए

 कभी सिंहासन पर, कभी फर्श पर, कभी उनके दरवाजे में

 प्रेम दु: ख धन्यवाद, हम कहा चले गए हैं?

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